राँची – 29 अक्टूबर :- फ्यूचर न्यूज़
झारखंड के कोयलांचल के रूप में मशहूर बोकारो, चतरा, धनबाद, गिरिडीह, हजारीबाग, कोडरमा और रामगढ़ जिले उत्तरी छोटानागपुर प्रमंड में शामिल है.इन सात जिलों में विधानसभा की कुल 25 सीटें हैं. इन जिलों में कोयले की खदानों की भरमार है. इसके बाद भी साफ पानी और बेरोजगारी यहां की प्रमुख समस्या है. यह इलाका प्रदेश के कुछ हाई प्रोफाइल नेताओं का चुनाव क्षेत्र भी है. झारखंड बीजेपी के प्रमुख बाबूलाल मरांडी भी इसी इलाके से आते हैं. आदिवासी समाज से आने वाले मरांडी एक सामान्य सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन भी इसी क्षेत्र में आने वाली एक विधानसभा सीट से उम्मीदवार हैं ।
उत्तरी छोटानागपुर में प्रदेश की राजनीति करने वाले सभी दलों की मौजूदगी है, लेकिन 2019 के चुनाव में बीजेपी इस इलाके में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. उस चुनाव में बीजेपी ने 11, कांग्रेस ने पांच, झारखंड मुक्ति मोर्चा ने चार, आल झारखंड स्टूडेंट यूनियन ने एक, सीपीआई (एमएलए) ने एक, झारखंड विकास मोर्चा ने एक, राष्ट्रीय जनता दल ने एक और एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार ने जीती थी ।
झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी गिरिडीह जिले की धनवार सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. वो आदिवासी समुदाय से आते हैं, लेकिन जिस सीट से वो चुनाव लड़ रहे हैं, वह सामान्य है. वहां उनका मुकाबला झारखंड मुक्ति मोर्चा के निजामुद्दीन अंसारी से है. इस सीट पर इंडिया गठबंधन में शामिल सीपीआई (एमएल) राज यादव भी चुनाव लड़ रहे हैं. निजामुद्दीन अंसारी दो बार इस सीट से विधायक चुने जा चुके हैं. जेएमएम का विधायक होने के बाद भी गिरिडीह के लिए पीने का साफ पानी अभी भी एक सपना है. इसके अलावा पलायन यहां की सबसे बड़ी समस्या है ।
वहीं पड़ोस की गांडेय सीट से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन चुनावी किस्मत आजमा रही हैं. गांडेय में यह उनका दूसरा चुनाव है. इससे पहले लोकसभा चुनाव के साथ हुए उपचुनाव में इस सीट से विजयी हुई थीं. यह उपचुनाव जेएमएम के विधायक सरफराज अहमद के इस्तीफे से खाली हुई थी.हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद कल्पना राजनीति के मैदान में उतरी थीं.सरफराज ने 2019 के चुनाव में बीजेपी के जयप्रकाश वर्मा को हराया था. गांडेय में बीजेपी ने कल्पना के सामने मुनिया देवी को उतारा है ।
झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा के प्रमुख जयराम महतो बरमो और डुमरी सीट से चुनाव मैदान में हैं. साल 2019 के चुनाव में बरमो सीट कांग्रेस और डुमरी सीट झारखंड मुक्ति मोर्चा ने जीती थी. कुडमी जाति के महतो पर इस चुनाव में सबकी नजरें लगी हुई हैं. महतो ने अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास लोकसभा चुनाव में कराया था. वो भले ही कोई सीट जीत न पाए हों, लेकिन कई राजनीतिक दलों का खेल उन्होंने बिगाड़ दिया था. युवा चेतना से लैस महतो युवाओं के मुद्दे उठाते हैं. वो स्थानीयता और बेरोजगारी को मुद्दा बनाते हैं. महतो ने लोकसभा चुनाव गिरिडीह सीट से लड़ा था.वहां उन्हें तीन लाख 47 हजार 322 वोट हासिल हुए थे. महतो का अपनी जाति पर अच्छी पकड़ है. जयराम अगर कुछ सीटें जीत लेते हैं तो वो चुनाव के बाद किंगमेकर की भूमिका में आ सकते हैं. डुमरी सीट पिछले चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा के जगरनाथ महतो ने जीती थी. जयराम और जगरनाथ दोनों ही अपने नाम के साथ टाइगर लगाते हैं. अब यह चुनाव परिणाम ही बताएगा कि डुमरी की जनता किस महतो को चुनती है ।
सबसे दिलचस्प लड़ाई झरिया सीट पर हो रही है. जहां दो महिलाओं के बीच मुकाबला है. दोनों रिश्ते में देवरानी जेठानी लगती हैं. यहां कांग्रेस विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह को चुनौती दे रही हैं बीजेपी की रागिनी सिंह. पूर्णिमा के पति नीरज सिंह की हत्या 2017 में हो गई थी. उनकी हत्या के आरोप में संजीव सिंह जेल में हैं. संजीव सिंह 2014 के चुनाव में बीजेपी के टिकट पर जीते थे. उन्होंने अपने चचेरे भाई और कांग्रेस उम्मीदवार नीरज सिंह को 30 हजार से अधिक के अंतर से हराया था. इन दोनों देवरानी-जेठानी का संबंध ‘सिंह मेंशन’से है. ‘सिंह मेंशन’ बाहुबली सूर्यदेव सिंह का आवास है. वो पूर्व विधायक थे. संजीव सिंह उन्हीं के बेटे हैं ।
वहीं अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित चतरा विधानसभा सीट पर राजद के निवर्तमान विधायक और प्रदेश के श्रम मंत्री सत्यानंद भोगता इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. संसद ने मार्च 2022 में झारखंड में भोगता समुदाय को अनुसूचित जाति (एससी) की सूची से अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सूची में रख दिया था.इससे उनकी दावेदारी खत्म हो गई थी. इसके बाद से अब राजद ने उनकी बहू रश्मि प्रकाश को इस सीट से मैदान में उतारा है । इस इलाके में झरिया समेत अन्य इलाकों में बड़े पैमाने पर अवैध कोयला खदाने हैं. यहां के बोकारो और धनबाद के कई हिस्सों में इस तरह के खदानों में होने वाले हादसों में लोगो की जान चली जाती है.लोगों का कहना है कि वो रोजगार के अवसर मौजूद न होने की वजह से वे अवैध खनन में शामिल होते हैं. कोयले की खदान वाले इलाकों में पानी का स्तर गिरने से पीने के पानी की समस्या एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है ।